2 सित॰ 2013

वह दूसरों के जैसा नहीं है!


सौ में से निन्यानवें बार ऐसा होता है। वे सब उसके खि़लाफ़ एक हो जाते हैं। जब कभी वह घर से निकलता है, गांडू-गांडू कहकर चिल्लाते हैं, पीछे आते हैं।

कस्बा जिसमें उसका जन्म हुआ, अखाड़ेबाज़ी और लौंडेबाज़ी के लिए मशहूर है। अखाड़ेबाज़ी के शौक़ीन लोगों में से कईयों को लौंडेबाज़ी की आदत हो जाती है, ऐसा माना और बताया जाता है। जो इस आदत का शिकार बनते हैं, उन्हें गांडू कहा जाता है। और डरपोक आदमी को भी यहां गांडू कहा जाता है।

मगर ये सब तो उसके दोस्त ही हैं जो उसे गांडू कहते हैं। हमेशा नहीं कहते। उसके साथ खेलते हैं, हंसते हैं, आते-जाते हैं, मिलते-जुलते हैं। मगर कभी-कभी एकाएक न जाने क्या होता है कि वे सब एक तरफ़ और वह एक तरफ़।

वह पीला, कमज़ोर, डरपोक, घुग्घू और भौंदू-सा बच्चा। उसे पता ही नहीं चलता कि ऐसा क्या हुआ कि एकाएक वे सब उसके खि़लाफ़ हो गए!

वह जब इस घर में आया था तो आते ही उसे टाइफ़ाइड हो गया था। और वह बहुत कमज़ोर हो गया था। पहले कैसा था उसे याद नहीं। मगर इतना याद है कि टाइफ़ाइड ठीक होने के बाद दोबारा चलना सीखा था उसने। मां हाथ पकड़कर ऐसे ही चलाती जैसे छोटे बच्चे को सिखाते हैं।

कभी-कभी दिलबर चुपचाप पीछे से आता है और उसकी टांग में अपनी टांग अड़ा देता है। वह धड़ाम से नीचे आ गिरता है। सब बच्चे हंसने लगते हैं। कोई भी दिलबर से नहीं कहता कि ऐसा क्यों कर रहे हो! एक तो बिना बात किसीको गिरा रहे हो। और पीछे से आकर धोखे से गिरा रहे हो! फ़िर हंस रहे हो!

कौन कहेगा! वे तो ख़ुद भी हंसते हैं। उनके बाप खड़े हों तो बाप भी हंसते हैं, मांएं खड़ी हों तो माएं भी हंसतीं हैं, बहिनें खड़ी हों तो बहिनें भी हंसतीं हैं।

उसका मन क्यों नहीं होता कि किसीको धोखे से गिरा दे और हंसे। क्या यह दुनिया उसके जैसे लोगों के लिए नहीं है! क्या उसके जैसा होना बुरी बात है, अपराध है, हंसने की बात है! क्या जीने के लिए उसे भी इनके जैसा बनना होगा !

02-09-2013

(जारी) 

4 टिप्‍पणियां:

रुके-रुके से क़दम....रुक के बार-बार चले...