21 जून 2018

वो तो लड़के भी करते हैं

लड़के को मैं भली-भांति जानता था, इसलिए उसके भोलेपन और मासूमियत का मुझे अंदाज़ा था। तबियत भी ख़राब रहती थी उसकी, लेकिन वो रसोई के काम बिना किसी मेल ईगो को बीच में लाए कर देता था। उसकी ऐसी ईगो दूसरे कुछ मामलों में ज़रुर देखने को मिलती थी। उसकी बहिनों के ब्वॉय-फ्रेंडस् थे, उसकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी। मेरे मन में एक कसक-सी उठती थी जब मैं अपनी एक झलक, पूरी तो नहीं, मैं तो बहुत विद्रोही रहा हूं, कुछ-कुछ उसमें देखता था, मुझे उसके भविष्य की चिंता होने लगती थी। मैंने उसकी बहिनों से पूछा तो उन्होंने बताया कि एक लड़की इस में बहुत इंट्रेस्टेड है, पर यह उसे भाव नहीं देता।

मैंने एक दिन अकेले में उससे इस बारे में बात की, उसने कहा कि ‘लड़कियां झूठ बोलतीं हैं, चुगली लगातीं हैं, एक-दूसरे में लड़ाई करवा देतीं हैं.....

मेरे पास दो रास्ते थे, एक-कि उससे कहूं कि लड़कियां बहुत महान होतीं हैं, उनका सम्मान करना चाहिए, उनसे सीखना चाहिए.....

पर मैंने दूसरी, अपने अनुभव के अनुसार सच्ची और व्यवहारिक बात कही क्योंकि मुझे लगा कि लड़के की शिक़ायतें बिलकुल ग़लत भी नहीं हैं......

मैंने कहा कि चुगलियां तो लड़के भी करते हैं, झगड़े भी करते-कराते हैं, जब ऐसे लड़कों से दोस्ती में कोई दिक्क़त नहीं है तो लड़कियों से क्यों.....

बात बन गई थी। बाद में मुझे पता चला कि लड़के की दोस्ती उसी लड़की से हो गई थी।

बाद में कई साल मैं उनसे मिला नही, मौक़ा ही नहीं मिला, वरना क्या पता मुझे उनसे ईर्ष्या होने लगती।

-संजय ग्रोवर
21-06-2018


23 मई 2018

हॉस्टेल और हस्तमैथुन

उस दिन सीनियर्स ने सुबह 10-11 बजे ही बुला लिया था। एक वजह से तो मुझे ख़ुशी भी हुई कि आज क्लास में नहीं जाना पड़ेगा। मगर सीनियर्स ने भी कोई पिकनिक के लिए नहीं, रैगिंग के लिए बुलाया था। उन्होंने दो-चार सवाल पूछे फिर अचानक एक सीनियर बोला-‘ग्रोवर, चल पैंट उतार!’ मैं बहुत ज़्यादा तो नहीं घबराया क्योंकि रैंगिंग के बारे में पहले ही सुन रखा था। मैंने धीरे-धीरे पैंट के बटन खोल दिए। ‘चल नीचे खिसका’, एक सीनियर ने आदेश दिया। मैंने घुटनों तक सरका दी। ‘चल अंडरवीयर उतार’, एक सीनियर ने मर्दाने लहज़े में कहा। मैंने अंडरवीयर भी घुटनों तक सरका दिया।

‘अबे ये क्या ! तू लंगोटी भी पहनता है !?’

‘मैं कुछ नहीं बोला।

‘तू इतना पतला कैसे है, मुट्ठ ज़्यादा मारता है क्या ?’

मैं क्या जवाब दूं ? मुझे उस वक़्त तक ठीक से पता ही नहीं था कि ‘मुट्ठ’ मारना होता क्या है! 

अलग-अलग नामों से इस क्रिया का ज़िक्र मैंने लड़को से सैकड़ों बार सुना था मगर ठीक-ठीक पता नहीं था कि क्या है। मज़े की बात यह भी है कि उलझन, अनिर्णय और तनाव की स्थिति में कई बार मुझे लगता कि जब इतना कमज़ोर हूं, अकसर बीमार भी रहता हूं और कई लोग मुझपर ऐसा शक़ करते हैं तो शायद हो सकता है कि मैं करता होऊं, शायद स्वप्न-स्खलन का ही दूसरा नाम हस्तमैथुन हो!

मैं चुप ही रहा।

उन्होंने पता नहीं क्या-कुछ मुआयना किया फिर कहा ‘चल पहन ले कपड़े’। मैंने धीरे-धीरे कपड़े वापस ऊपर चढ़ा लिए और राहत की हल्की सांस ली कि लंगोटी नहीं उतरवाई।

कम-अज़-कम मेरे सामने तो उन्होंने मेरे बारे में कोई निर्णय नहीं दिया।

एक सीनियर जो ख़ासा लंबा-ऊंचा, हैंडसम था, उसने कहा कि ‘ग्रोवर, अगर तू थोड़ी भी हैल्थ बना ले तो लड़कियों की कोई कमी नहीं रहेगी....’ हालांकि उसके सामने मैं पिद्दी-सा लगता था।

लेकिन उसकी बात बाद के मेरे जीवन में काम आई।

लंगोटी पहनना मैंने ऐसे किसी भी कारण से शुरु नहीं किया था जैसे कि मैं अब तक सुनता आया था। अगले किसी पन्ने में विस्तार से ज़़िक़्र करुंगा।

स्वप्न-दोष (Nocturnal emission) तो मुझे होता था, उसकी जानकारी भी थी पर ‘मुट्ठ’ या ‘हथलस’ कैसे मारा जाता है, पता नहीं था। कोई 40 की उम्र के आस-पास मैंने यह काम पहली बार किया।

तब मुझे समझ में आया कि उस वक़्त हॉस्टेल के ज़्यादातर लड़के यह काम करते थे (वे ख़ुद ही बताते रहते थे) मगर उनमें से ज़्यादातर हट्टे-कट्टे थे या ठीक-ठाक थे। मैं यह काम उस वक़्त जानता भी नहीं था फिर भी सबसे दुबला-पतला था। कमज़ोर था।

मैं क़िताबें, अख़बार, पत्रिकाएं काफ़ी पढ़ता था। पर मैंने देखा कि क़िताबी, फ़िल्मी और बुज़ुर्गों या दोस्तों से सुनी हुई बहुत-सी बातें कम-अज़-कम मेरी ज़िंदगी के संदर्भ में तो ग़लत साबित हुईं थीं।

(जारी)

-संजय ग्रोवर

23-05-2018