29 मई 2017

एक चुटकी ुतियापा

‘चुन्नी कहां हैं ? मेरी चुन्नी कहां है ?’ बाहर से घंटी बजती और माताजी घबरा जाते ; हालांकि सलवार-कमीज़ पहने हैं, स्वेटर पहने हैं, ज़ुराबें पहने हैं, कई-कई कपड़े पहने हैं मगर संस्कार, डर, कंडीशनिंग....मैं तो कहूंगा कि बुरी आदत, थोपा गया आतंक.... और चुन्नी भी कई बार बिलकुल पतली, कांच के जैसी, आर-पार सब दिखाई दे....बस समझिए कि मनोवैज्ञानिक चुन्नी, मानसिक चुन्नी.....लड़कियां चुन्नी के बिना बाहर निकलतीं तो लोगों के कान खड़े हो जाते, पूछते कि ये किसकी लड़की है.....

अब जाकर ज़रा छूटी है, सालों लग गए एक चुन्नी से मुक्त होने में....जिसने बनाई उसने तो यही कहा होगा कि ज़रा-सी तो बात है, थोड़ी देर की बात है, दो मिनट के लिए डाल लो सर पर.....उसे क्या मालूम होगा कि हटाने में सदियां लग जातीं हैं, ज़िंदगियां बर्बाद हो जातीं हैं.....

गाना तो सुना ही होगा न.....‘मेरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूं ; तेरी ज़ुल्फ़ फिर संवारुं, तेरी मांग फिर सजा दूं....’ मांग तो सजा दो भैया पर क्या तुम्हे मालूम है कि यह प्रतीकबाज़ी कितनी भारी पड़ती है ? ज़रा-सा लाल बुरादा है पर पीछे क्या इरादा है ? लड़कियां बिना इसके, घर से निकलने में डरतीं हैं, तलाक़शुदा औरतें अकेले रहने के नाम पर कंपकंपातीं हैं और एक गधे से छूटतीं है तो कई गधों में फंस जातीं हैं।

‘एक चुटकी सिंदूर की क़ीमत तुम क्या जानो बाबू.....’ तो तुम तो जानते हो न क़ीमत, अपने सर में क्यों नहीं लगा लेते ? ख़ुद तो घूमोगे बनियान फाड़कर, दूसरे को चवन्नी के लाल पाउडर में बरबाद कर दोगे। सदियां दब जाएंगीं इस चम्मच-भर चमचागिरी के नीचे।  

लोग बुरा मान जाते हैं जब मैं कहता हूं कि बेवजह औरत का सम्मान नहीं कर सकता। अजीब बात है! अगर आपकी आंखें छोटी-छोटी हैं और मैं कहूं कि बिलकुल हिरनी जैसी हैं, ऐसी तो पहले कभी देखी नहीं! तो आपको नहीं पता होना चाहिए कि आपकी आंखें कैसी हैं ? यह सम्मान है ? यह तो झूठ है। आपको शक़ होना चाहिए कि यह आदमी बेवजह तारीफ़ क्यों कर रहा है ? चाहता क्या है ? कुछ तो गड़बड़ है। और जहां चुन्नी और चुटकी हटाने में सदिया ख़राब हो जाएं, वहां परिवर्तन के नाम पर बार-बार ऊटपटांग स्थापनाएं करने से पहले कुछ तो सोचना चाहिए!

(जारी)

एक चुटकी ुतियापा-2

-संजय ग्रोवर
29-05-2017