14 मार्च 2017

तीसरा बच्चा

बच्चों की भलाई के लिए काम करनेवाली एक संस्था से आज एक फ़ोन आया। काफ़ी नाम वाली संस्था है। एक भली लड़की बच्चों की किसी योजना का विवरण देने लगी। बच्चों के लिए आर्थिक मदद मांगनेवाले फ़ोन कई बार आते हैं। मैंने भली लड़की से कहा कि मैं आपको बीच में टोक रहा हूं पर आपको बता दूं कि मैंने बच्चों की भलाई के लिए एक काम यह किया है कि बच्चे पैदा ही नहीं किए। भली लड़की थोड़ा उखड़ गई, बोली मैं आपके बच्चों की बात नहीं कर रही। मैंने कहा बात कैसे करेंगी, मेरे बच्चे हैं ही नहीं। भली लड़की ने फ़ोन काट दिया।

भली लड़की की जगह भला लड़का भी हो सकता था, सवाल वह है ही नहीं। बच्चों को लेकर हमारी जो पूरी मानसिकता है, मेरी समझ से क़तई बाहर है। भली लड़की को शायद ही पता हो कि मैंने सच्ची, वास्तविक और ईमानदार ज़िंदगी बिताने के लिए कई फ़ायदे, कई चीज़ें छोड़ दीं। मैंने कभी गाड़ी नहीं ख़रीदी, एसी क्या कूलर तक इस्तेमाल नहीं किए, फ़ाइव स्टार होटल नहीं देखे, स्टेडियम में जाकर क्रिकेट मैच नहीं देखे, बर्थडे नहीं मनाए......मैं बहुत ही सीमित पैसे में गुज़ारा करता हूं, मैं दूसरों के बच्चों के लिए पैसे क्यों खर्च करुं!? आप लोग क्यों नहीं यह समझते और समझाते कि बच्चे पैदा ही तब करने चाहिए जब आपके पास उनके लिए ठीक-ठाक कुछ इंतज़ाम हो।

मुझे याद है जब मेरे एक पड़ोसी नाजायज़ कमरा बनाने की कोशिश कर रहे थे, मैंने शिक़ायत कर दी ; तब समाज की सुरक्षा के लिए बनी एक महत्वपूर्ण संस्था के एक कर्मचारी ने मुझसे कहा कि ‘क्या आपको पता है कि उनके लड़के की शादी है! मैं परेशानी की हालत में हैरान भी हुआ और थोड़ा हंसने को भी हो आया। मैंने सोचा कि भाईसाहब, क्या आपको पता है कि आपको शादियां कराने के लिए नहीं, क़ानून बनाए रखने के लिए रखा गया है!?

अद्भुत सोच है! यानि मैं तो इसलिए बिना शादी और बच्चों के रह रहा हूं, ताकि क़ानून का पालन कर सकूं और अपनी समझ के हिसाब से कोई ग़ैरज़िम्मेदाराना काम न करुं मगर हमारा समाज चाहता है कि मैं उनके बच्चों के लिए पैसे भी ख़र्च करुं और क़ानून भी तोड़ने में उनकी मदद करुं!

(जारी)

-संजय ग्रोवर

14-03-2017