21 जन॰ 2011

मोहे अगला जनम ना दीजो-3

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‘‘ ांडू है।’’ ं
‘‘ ांडू है।’’
कौन हैं ये बच्चे ! क्यों सरल के पीछे लगे हैं !? क्या कह रहे हैं सरल को !?
‘‘ ांडू आ गया।’’
‘‘ओए ! ांडू आ गया।’’
पसीना-पसीना सरल अपने घर में घुसेगा और घर वालों की नज़रों से ख़ुदको बचाता हुआ बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ रहेगा। अपराधबोध का मारा करवटे बदलेगा।
क्या कोई अपराध किया है सरल ने ?
क्या पता ?
क्या सरल दलित है ?
क्या पता ?
क्या सरल स्त्री है ?
क्या पता ?
क्या सरल लैंगिक विकलांग है ?
क्या पता ?

सरल के दोस्त हैं ये सारे बच्चे। पर सरल के पास फ़िलहाल यह जानने का कोई उपाय नहीं कि हर बार ये सब उसीके खि़लाफ़ मिलकर एक क्यों हो जाते हैं ?

‘‘ ांडू है।’’
‘‘ ांडू आ गया।’’

क्या सरल की सारी ज़िन्दगी यूंही बीतने वाली है ! क्या हताशा, झेंप, अवसाद, कुण्ठा, तन्हाई और अपराधबोध ही उसके स्थाई दोस्त होंगे ?

‘‘पिंटू किसीसे नहीं बोलता, किसी के सामने नहीं आता, लड़की है लड़की।’’ ये सरल के मामा हैं। पढ़े लिखे हैं, ख़ुले दिमाग के हैं, प्यार करते हैं सरल को, बचपन में खिलौने लेकर आया करते थे, कहानियां सुनाते थे, मगर......
मेहमानों के सामने ऐसी बातें क्यों करते हैं मामाजी ? सरल का कलेजा चाक-चाक हो जाता है। मामाजी को क्या पता पहले से टूटे-बिखरे सरल की क्या हालत हो जाती है ऐसी बातें सुनकर ! उसे समझ नहीं आता अपना मुंह कहां जाकर छुपाए ? लाख कोशिश करे पर उसकी नज़रें नहीं उठतीं मेहमानों के सामने। सही बात तो यह है कि कोशिश करने से पहले ही हारा हुआ शख़्स है वह। तिसपर किसीने प्लेट से एक बिस्किट उठाने को कह दिया तो ! कैसे वह अपने हाथ को प्लेट तक ले जाएगा और कैसे हाथ की कंपकंपी को छुपाएगा ? उठा लेगा तो एक जन्म लग जाएगा खाने में। सरल की हालत पूछे कोई तो वह यह भी नहीं बता पाएगा कि बिस्किट मीठा था या नमकीन। मेहमानों के सामने एक पूरा बिस्किट खा लिया उसने यही क्या कम बड़ी बात है।
‘‘ ओ पिंटू, तेरी दाढ़ी-मंूछ कब आएगी यार ! इस उम्र में तो.....’’
नाईं के उस्तरे से भी क्रूर लगतीं हैं कई बार मामाजी की बातें। पर सरल कहे तो कहे क्या उनसे !
वह तो अपने ही अपराध-बोध में इस क़दर क़ैद है कि कभी ध्यान ही नहीं दिया कि ख़ुद मामाजी का दाढ़ी-मूंछ के साथ एक भी फ़ोटो नहीं है !
(जारी)

संवादघर पर पूर्व-प्रकाशित

2 टिप्‍पणियां:

  1. सरल को प्यार की जरुरत हे, प्यार से समझाने पर सब ठीक हो जायेगा, क्योकि सरल बहुत अच्छा ओर समझ दार हे

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रुके-रुके से क़दम....रुक के बार-बार चले...