बाल मामाजी, दुनियावाले ईमानदार बच्चों को या तो चूहों की तरह मार देते हैं या अपराधी बनाने पे तुल जाते हैं....
बाल मामाजी, दुनियावाले ईमानदार बच्चों के या तो मरने का इंतज़ार करते हैं या उन्हें बेईमान बनाने पे तुल जाते हैं....
ये मेरे और तुम्हारे बीच की बात है....
मैं किसी तीसरे के बारे में बात नहीं कर रहा.....
यूं यह डायरी ख़ुली है, कोई भी पढ़ सकता है....
लेकिन ज़बरदस्ती किसीको पढ़वाना भी नहीं है....
दूसरों से ज़बरदस्ती का मेरे जीवन में बहुत ही कम स्थान रहा है....
यही वजह होगी जो मैं अपने साथ होनेवाली हर ज़बरदस्ती को आसानी से महसूस कर सकता हूं....
यही वजह होगी जो मैं मामूली से मामूली ज़बरदस्ती का भी तीव्र विरोध करता हूं.......
मुसीबत में मुझे माता-पिता की जगह तुम्ही क्यों याद आते हो ?
मुसीबत मेरी ज़िंदगी में कब नहीं रही....
कब मैं मुसीबत में नहीं रहा...
मसला ही ऐसा है....ईमानदारी और बेईमानी का मसला.....
अपनी आंखों के सामने मैंने सिर्फ़ एक ही आदमी को देखा है जिसने इस वजह से जान दे दी पर समझौता नहीं किया....
क़िस्से-कहानियां तो बहुत पढ़े पर उनपर विश्वास नहीं होता, क्योंकि सच्चाई के मामले में ज़िंदा आदमी बहुत पिलपिले हैं, बहुत ही कमज़ोर, बेईमानी से एडजस्ट कर जाने को ही वे सफ़लता कहते हैं, हीरोइज़्म कहते हैं....
ख़ैर, हीरोइज़्म का तो अब ज़िंदगी में कोई अर्थ ही नहीं रहा.......बचकानी बातें लगतीं हैं....
कुछ करने के लिए ये सब बातें ज़रुरी नहीं लगतीं....
क्यों मैं ज़बरदस्ती का इतना विरोध करता हूं......क्यों मैं धारणाओं, मान्यताओं, कर्मकांडों, तीज-त्योहारों का इतना विरोध करता हूं....
मैं बताता हूं...संवेदनशील लोगों के लिए इस तरह की बातें समझना कोई मुश्क़िल नहीं....कमअक़्लों को शायद ये बातें कभी समझ में न आएं...
13-01-2019
....तो मैंने कहा था मुझे पैदा करो.....
आखि़र एक दिन तंग आकर मैंने पापाजी से कह ही दिया...
उस वक़्त मुझे भी लगा कि मैंने कोई बहुत ही ख़राब बात कह दी है....
कोई बहुत ही ग़लत बात....
लेकिन यह तो मुझे ही मालूम है कि वो रोज़ाना मुझसे किस तरह की बातें कहते थे, कैसे ताने देते थे, क्या-क्या इल्ज़ाम लगाते थे....
मैं क्या करता....
पूरी ईमानदारी से कहूं तो मैंने जबसे होश संभाला, मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही बात महसूस करता था...
कि इस दुनिया में पैदा होकर मैं एक अजीब-से जंजाल में फंस गया हूं....
.......और इससे बड़ा सच क्या होगा कि मैं अपनी मर्ज़ी से पैदा नहीं हुआ था....
कोई बच्चा अपनी मर्ज़ी से पैदा नहीं होता...
फिर इस तरह की बातें कि अहसान मानो कि मां-बाप ने तुम्हे पैदा किया...
कि इतनी सुंदर दुनिया तुम्हे देखने को मिली...
कि ज़िंदगी तुम्हारे ऊपर मां-बाप का कर्ज़ है....
ये क्या बकवास है ?
पहले बच्चे से पूछ तो लो कि दुनिया उसे कितनी सुंदर लगती है ?
मैं मानता हूं कि मां-बाप को बच्चे का अहसान मानना चाहिए कि उसे तुम उसकी मर्ज़ी के बिना इस दुनिया में लाए फिर भी उसने कोई ऐतराज़ नहीं किया......
तुमने जो भी धर्म, मज़हब, अमीरी, ग़रीबी, घर, मकान, हालात...उसको दिए, उसने स्वीकार कर लिए....
ये तुम्हारा नहीं, बच्चे का कर्ज़ है तुम पर....
आज मैं महसूस करता हूं कि मैंने सौ फ़ीसदी सही बात कही पापाजी से....
वो भले आदमी थे.......मेहनती आदमी थे.....जितना उनके बस का था, ईमानदार भी थे....मुझे दुख हुआ कि मैंने उनसे ऐसा कहा....
पर कभी तो कोई कहेगा......सभी झूठ बोलते रहेंगे तो सच की हालत तो ख़राब ही रहेगी.....
वो बहुत दुखी हुए.....उन्हें काफ़ी ग़ुस्सा आ गया....उन्होंने मुझसे कहा-
‘अच्छा होता जो पैदा होते ही तुझे मार देता......’
लगता है कि उन्हें भी ऐसी बात की उम्मीद नहीं थी, कोई अप्रत्याशित बात सुन ली थी उन्होंने...उन्हें शायद गहरी चोट पहुंची थी......वरना ऐसी प्रतिक्रिया न करते.......
ये दुनियादार लोग, ये सफ़ल लोग, तथाकथित सामाजिक लोग, बिज़ी लोग......लगता है कि ज़िंदगी की कई सच्चाईयां कभी इनके ज़हन में आई ही नहीं.....इन्हें छूकर भी नहीं गुज़री.....
आज भी मैं देखता हूं...टीवी पर, फ़िल्मों में, डिबेट्स् में.....
क्या कहूं कि कैसा लगता है.....
लेकिन मैं हर हाल में सच बोलूंगा....
15-01-2019