22 दिस॰ 2019

समाज और न्याय की समझ

हमारे घर की बिजली अकसर ख़राब हो जाती थी।

कई बार तो एक-एक हफ़्ते ख़राब रहती थी।


जबकि पड़ोस के बाक़ी घरों की बिजली आ रही होती थी।


उसका कारण था। 


हमारे पिताजी के संबंध और आना-जाना वैसे तो बहुत लोगों से था मगर न तो किसी दबंग और बदमाश सेे संबंध रखते थे न ख़ुद बदमाशी करते थे और न किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्त्ता थे।


हां, जब दुकान से फ़ुरसत मिलती, तो वे बिजलीवालों से कुछ अनुनय-विनय करके, कुछ पैसे-वैसे देकर बिजली ठीक करवा लेते थे।


मैं इतना भी नहीं करता था।


कई लोग समझते थे कि मैं शरमीला, अव्यवहारिक और भौंदू क़िस्म का आदमी हूं।


और भीड़ और प्रचलित मान्यताओं के प्रभाव और दबाव में मैं भी ख़ुदको ऐसा ही समझ लेता था।


लेकिन सिर्फ़ यही बात नहीं थी।


असल में मैं भीतर से बहुत विद्रोही था और अपना काम करवाने के समाज के इन घटिया और गंदे तरीक़ों से बहुत नफ़रत करता था।

उस समय ज़्यादातर दबंग, बदमाश, रईस आदि एक ही पार्टी का समर्थन करते थे।


जैसे अब एक दूसरी पार्टी का करते हैं।

3 नव॰ 2019

भीड़ और हम

मज़े की बात है कि जब प्रशंसा में तालियां बजतीं हैं तब आदमी नहीं देखता कि तालियां बजानेवालों की भीड़ कैसे लोंगों के मिलने से बनी है !? उसमें पॉकेटमार हैं कि ब्लैकमेलर हैं कि हत्यारे हैं कि बलात्कारी हैं कि नपुंसक हैं कि बेईमान हैं कि.......

लेकिन जैसे ही इसका उल्टा कुछ होता है तो व्यक्ति को भीड़ में तरह-तरह के दोष दिखाई देने लगते हैं......

शायद मैं उस वक़्त बी.कॉम. कर रहा था, सर्दियों में एक दिन छत पर गया तो देखा कि पीछे मिल में एक आदमी एक कमज़ोर-से आदमी को पेड़ से बांधकर बेल्ट से पीट रहा था। मैंने इतना ही देखा कि भीड़ में अमीर भी थे, ग़रीब भी थे, पढ़े-लिखे भी थे.....सब एक ही तरह से हंस रहे थे......तमाशा देख रहे थे.......

इससे ज़्यादा मुझसे देखा नहीं गया......

और कुछ किया भी नहीं गया.....

पीटनेवाला अमीर आदमी था और पिटनेवाला एक ग़रीब चोर था जो मुझे बाद में पता चला....

किसीने नहीं कहा होगा कि तुम ख़ुद क्यों पीट रहे हो ? चोरी की है तो पुलिस को बुलाओ, क़ानून हाथ में क्यों ले रहे हो.........

ज़्यादातर लोग उस अमीर आदमी के चमचे थे........

.......जैसाकि अभी भी होता है... 

मैंने मॉब-लिंचिंग जैसी जो भी घटनाएं देखी संभवतः एक ही धर्म के लोगों की भीड़ के लोगों द्वारा अपने ही धर्म के किसी कमज़ोर या अकेले पड़ गए या फंस गए या फंसा लिए गए व्यक्ति को पीटे जाने की देखीं.......

जैसी मैं इसलिए कह रहा हूं कि उन में किसीकी जान तो नहीं ली गई लेकिन बेरहमी से मारा गया और अधमरा करके छोड़ दिया गया।



बाद में मुझे पता चला कि यह आदमी किसी अहिंसा की बात करनेवाली विचारधारा से जुड़ा है........हो सकता है कि अब इसी विचारधारा का ठेका कुछ दूसरी तरह के लोगों के पास हो......

आज मुझे हंसी आती है जब लोग विचारधारा के पक्के होने की बात करते हैं.....

भीड़ पर वे तरह-तरह की राय देते हैं पर ख़ुद भीड़ को लुभाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं.........

(जारी)
#संजयग्रोवर
03-11-2019


28 अप्रैल 2019

पैरालिसिस और मैं

आज पूरा एक महीना हो गया जब मुझे पैरालिसिस का दूसरा अटैक हुआ था। एक हफ़्ते तक तो मैंने किसी को बताया ही नहीं। मुझे लग रहा था कि मैं ऐसे ही ठीक हो जाऊंगा। एक हफ़्ते बाद मेरी बहिन का फ़ोन आया तो मैंने बताया। डॉक्टर ने कहा कि अब तो कुछ नहीं हो सकता, उसी समय बताते तो ठीक हो जाता। अभी मैं दवा दे रहा हूं जिससे ये और ज़्यादा नहीं होगा, जितना है उतने तक ही रहेगा, बाक़ी भगवान की मज़ी। आपको मालूम है कि भगवान को तो मैं मानता नहीं। तो चारा यह बचा कि या तो घिसटने-मरने के लिए तैयार हो जाओ या अपने ऊपर विश्वास करो। इस दौरान मैं एक हाथ से शायरी वगैरहा लिख-लिख कर फ़ेसबुक, ट्विटर एवं पिंटरेस्ट पर लगाता पर लगाता रहा।
अब मैं 90 प्रतिशत ठीक हो चुका हूं। पहला अटैक तक़रीबन डेढ़-दो साल पहले हुआ था। उसपर भी लिखूंगा।
अभी इतना ही।

15 जन॰ 2019

....तो मैंने कहा था मुझे पैदा करो.....

....तो मैंने कहा था मुझे पैदा करो.....

आखि़र एक दिन तंग आकर मैंने पापाजी से कह ही दिया...

उस वक़्त मुझे भी लगा कि मैंने कोई बहुत ही ख़राब बात कह दी है....

कोई बहुत ही ग़लत बात....

लेकिन यह तो मुझे ही मालूम है कि वो रोज़ाना मुझसे किस तरह की बातें कहते थे, कैसे ताने देते थे, क्या-क्या इल्ज़ाम लगाते थे....

मैं क्या करता....

पूरी ईमानदारी से कहूं तो मैंने जबसे होश संभाला, मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही बात महसूस करता था...
कि इस दुनिया में पैदा होकर मैं एक अजीब-से जंजाल में फंस गया हूं....

.......और इससे बड़ा सच क्या होगा कि मैं अपनी मर्ज़ी से पैदा नहीं हुआ था....

कोई बच्चा अपनी मर्ज़ी से पैदा नहीं होता...

फिर इस तरह की बातें कि अहसान मानो कि मां-बाप ने तुम्हे पैदा किया...

कि इतनी सुंदर दुनिया तुम्हे देखने को मिली...

कि ज़िंदगी तुम्हारे ऊपर मां-बाप का कर्ज़ है....

ये क्या बकवास है ?

पहले बच्चे से पूछ तो लो कि दुनिया उसे कितनी सुंदर लगती है ?

मैं मानता हूं कि मां-बाप को बच्चे का अहसान मानना चाहिए कि उसे तुम उसकी मर्ज़ी के बिना इस दुनिया में लाए फिर भी उसने कोई ऐतराज़ नहीं किया......

तुमने जो भी धर्म, मज़हब, अमीरी, ग़रीबी, घर, मकान, हालात...उसको दिए, उसने स्वीकार कर लिए....
ये तुम्हारा नहीं, बच्चे का कर्ज़ है तुम पर....

आज मैं महसूस करता हूं कि मैंने सौ फ़ीसदी सही बात कही पापाजी से....

वो भले आदमी थे.......मेहनती आदमी थे.....जितना उनके बस का था, ईमानदार भी थे....मुझे दुख हुआ कि मैंने उनसे ऐसा कहा....

पर कभी तो कोई कहेगा......सभी झूठ बोलते रहेंगे तो सच की हालत तो ख़राब ही रहेगी.....

वो बहुत दुखी हुए.....उन्हें काफ़ी ग़ुस्सा आ गया....उन्होंने मुझसे कहा-

‘अच्छा होता जो पैदा होते ही तुझे मार देता......’

लगता है कि उन्हें भी ऐसी बात की उम्मीद नहीं थी, कोई अप्रत्याशित बात सुन ली थी उन्होंने...उन्हें शायद गहरी चोट पहुंची थी......वरना ऐसी प्रतिक्रिया न करते.......

ये दुनियादार लोग, ये सफ़ल लोग, तथाकथित सामाजिक लोग, बिज़ी लोग......लगता है कि ज़िंदगी की कई सच्चाईयां कभी इनके ज़हन में आई ही नहीं.....इन्हें छूकर भी नहीं गुज़री.....

आज भी मैं देखता हूं...टीवी पर, फ़िल्मों में, डिबेट्स् में.....

क्या कहूं कि कैसा लगता है.....

लेकिन मैं हर हाल में सच बोलूंगा.... 

15-01-2019

पिछला

13 जन॰ 2019

बाल मामाजी, दुनियावाले ईमानदार बच्चों के या तो मरने का इंतज़ार करते हैं या

बाल मामाजी, दुनियावाले ईमानदार बच्चों को या तो चूहों की तरह मार देते हैं या अपराधी बनाने पे तुल जाते हैं....

बाल मामाजी, दुनियावाले ईमानदार बच्चों के या तो मरने का इंतज़ार करते हैं या उन्हें बेईमान बनाने पे तुल जाते हैं....

ये मेरे और तुम्हारे बीच की बात है....

मैं किसी तीसरे के बारे में बात नहीं कर रहा.....

यूं यह डायरी ख़ुली है, कोई भी पढ़ सकता है....

लेकिन ज़बरदस्ती किसीको पढ़वाना भी नहीं है....

दूसरों से ज़बरदस्ती का मेरे जीवन में बहुत ही कम स्थान रहा है....

यही वजह होगी जो मैं अपने साथ होनेवाली हर ज़बरदस्ती को आसानी से महसूस कर सकता हूं....

यही वजह होगी जो मैं मामूली से मामूली ज़बरदस्ती का भी तीव्र विरोध करता हूं.......

मुसीबत में मुझे माता-पिता की जगह तुम्ही क्यों याद आते हो ?

मुसीबत मेरी ज़िंदगी में कब नहीं रही....

कब मैं मुसीबत में नहीं रहा...

मसला ही ऐसा है....ईमानदारी और बेईमानी का मसला.....

अपनी आंखों के सामने मैंने सिर्फ़ एक ही आदमी को देखा है जिसने इस वजह से जान दे दी पर समझौता नहीं किया....

क़िस्से-कहानियां तो बहुत पढ़े पर उनपर विश्वास नहीं होता, क्योंकि सच्चाई के मामले में ज़िंदा आदमी बहुत पिलपिले हैं, बहुत ही कमज़ोर, बेईमानी से एडजस्ट कर जाने को ही वे सफ़लता कहते हैं, हीरोइज़्म कहते हैं....

ख़ैर, हीरोइज़्म का तो अब ज़िंदगी में कोई अर्थ ही नहीं रहा.......बचकानी बातें लगतीं हैं....

कुछ करने के लिए ये सब बातें ज़रुरी नहीं लगतीं....

क्यों मैं ज़बरदस्ती का इतना विरोध करता हूं......क्यों मैं धारणाओं, मान्यताओं, कर्मकांडों, तीज-त्योहारों का इतना विरोध करता हूं....

मैं बताता हूं...संवेदनशील लोगों के लिए इस तरह की बातें समझना कोई मुश्क़िल नहीं....कमअक़्लों को शायद ये बातें कभी समझ में न आएं...

13-01-2019

....तो मैंने कहा था मुझे पैदा करो.....

आखि़र एक दिन तंग आकर मैंने पापाजी से कह ही दिया...

उस वक़्त मुझे भी लगा कि मैंने कोई बहुत ही ख़राब बात कह दी है....

कोई बहुत ही ग़लत बात....

लेकिन यह तो मुझे ही मालूम है कि वो रोज़ाना मुझसे किस तरह की बातें कहते थे, कैसे ताने देते थे, क्या-क्या इल्ज़ाम लगाते थे....

मैं क्या करता....

पूरी ईमानदारी से कहूं तो मैंने जबसे होश संभाला, मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही बात महसूस करता था...
कि इस दुनिया में पैदा होकर मैं एक अजीब-से जंजाल में फंस गया हूं....

.......और इससे बड़ा सच क्या होगा कि मैं अपनी मर्ज़ी से पैदा नहीं हुआ था....

कोई बच्चा अपनी मर्ज़ी से पैदा नहीं होता...

फिर इस तरह की बातें कि अहसान मानो कि मां-बाप ने तुम्हे पैदा किया...

कि इतनी सुंदर दुनिया तुम्हे देखने को मिली...

कि ज़िंदगी तुम्हारे ऊपर मां-बाप का कर्ज़ है....

ये क्या बकवास है ?

पहले बच्चे से पूछ तो लो कि दुनिया उसे कितनी सुंदर लगती है ?

मैं मानता हूं कि मां-बाप को बच्चे का अहसान मानना चाहिए कि उसे तुम उसकी मर्ज़ी के बिना इस दुनिया में लाए फिर भी उसने कोई ऐतराज़ नहीं किया......

तुमने जो भी धर्म, मज़हब, अमीरी, ग़रीबी, घर, मकान, हालात...उसको दिए, उसने स्वीकार कर लिए....
ये तुम्हारा नहीं, बच्चे का कर्ज़ है तुम पर....

आज मैं महसूस करता हूं कि मैंने सौ फ़ीसदी सही बात कही पापाजी से....

वो भले आदमी थे.......मेहनती आदमी थे.....जितना उनके बस का था, ईमानदार भी थे....मुझे दुख हुआ कि मैंने उनसे ऐसा कहा....

पर कभी तो कोई कहेगा......सभी झूठ बोलते रहेंगे तो सच की हालत तो ख़राब ही रहेगी.....

वो बहुत दुखी हुए.....उन्हें काफ़ी ग़ुस्सा आ गया....उन्होंने मुझसे कहा-

‘अच्छा होता जो पैदा होते ही तुझे मार देता......’

लगता है कि उन्हें भी ऐसी बात की उम्मीद नहीं थी, कोई अप्रत्याशित बात सुन ली थी उन्होंने...उन्हें शायद गहरी चोट पहुंची थी......वरना ऐसी प्रतिक्रिया न करते.......

ये दुनियादार लोग, ये सफ़ल लोग, तथाकथित सामाजिक लोग, बिज़ी लोग......लगता है कि ज़िंदगी की कई सच्चाईयां कभी इनके ज़हन में आई ही नहीं.....इन्हें छूकर भी नहीं गुज़री.....

आज भी मैं देखता हूं...टीवी पर, फ़िल्मों में, डिबेट्स् में.....

क्या कहूं कि कैसा लगता है.....

लेकिन मैं हर हाल में सच बोलूंगा....

15-01-2019